Raja Harishchandra- First Indian Film-Dada Saheb Phalke | Old is Gold

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1913 की मराठी फिल्म राजा हरिश्चंद्र का इंडियन फिल्म इंडस्ट्री के इतिहास  में सबसे ऊँचा पद है।  यह भारत की पहली साइलेंट फीचर फिल्म थी जिसके डायरेक्टर, स्क्रींप्लेयर और प्रोडूसर दादा साहेब फाल्के जी और लेखक रणछोड़भाई उदयराम जी है। अपने नाम के अनुकूल यह फिल्म, अयोध्या के सूर्यवंशी राजा हरिश्चंद्र की कथाओं पर आधारित है। 

फि4 रील और चालीस मिनट में बनी, यह फिल्म भारत की पहली  कम्पलीट फिल्म थी । इसके साथ ही यह फिल्म अपने अदाकारों को लेकर एक और कारण से चर्चा में थी – दरअसल  ब्रिटिश दौर में महिलाओं का फिल्म में काम करना अशोभनीय माना जाता  था,  इसलिए रानी तारामती का फीमेल सेंट्रिक रोल भी अन्ना सालुंके नामक पुरुष ने निभाया था और इस तरह अण्णा सालुंके जी इंडिया के पहले फीमेल स्टार बने

Raja Harishchandra 1913 movie

कहानी की शुरुआत होती है राजा हरिश्चंद्र से जो को अपने बेटे, रोहिताश्व (भालचंद्र फाल्के) को रानी तारामती (अन्ना सालुंके) की उपस्थिति में धनुष और तीर से शूट करना सीखा रहे है। राजा हरिश्चंद्र के नागरिक अपने राजा को शिकार अभियान पर जाने के लिए कहते हैं। शिकार के दौरान, हरिश्चंद्र कुछ महिलाओं के रोने की आवाज सुनता है। वह एक ऐसे स्थान पर पहुँचता है जहाँ ऋषि विश्वामित्र (गजानन साने) उनकी इच्छा के विरुद्ध त्रिगुण शक्ति (तीन शक्तियों) से सहायता प्राप्त करने के लिए एक यज्ञ कर रहे हैं।

 हरिश्चंद्र अनजाने में तीन शक्तियों को मुक्त करके, विश्वामित्र के यज्ञ के बीच में बाधा दाल देते हैं। विश्वामित्र के क्रोध को शांत करने के लिए, हरिश्चंद्र  unhe अपना राज्य प्रदान कर देते हैं। शाही महल में लौटकर, राजा ne पूरी घटना रानी तारामती को सूचित ki।

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Raja Harishchandra 1913 movie story

विश्वामित्र ने हरिश्चंद्र, तारामती और पुत्र रोहिताश्व को वनवास में भेज और उन्हें दक्षिणा की व्यवस्था करने का आदेश दिया। निर्वासन में, पुत्र रोहिताश्व की मृत्यु हो जाती है | दुःखी मन से हरिश्चंद्र तारामती को, डोम के राजा से एक मुफ्त दाह संस्कार की व्यवस्था करने के लिए भेजता है। रास्ते में जब तारामती, डोम के राजा से मिलने के लिए निकलती हैं तो विश्वामित्र तारामती को काशी के राजकुमार की हत्या के जुर्म में फंसा देते है।

तारामती को मुकदमे का सामना कर, दोषी ठहराया जाता है और उसे हरिश्चंद्र द्वारा सिर काटने का आदेश दिया जाता है। हरिश्चंद्र जब अपना कार्य पूर्ण  करने के लिए तलवार उठाता है, तभी भगवान शिव प्रसन्न हो प्रकट होते हैं।

अंततः विश्वामित्र ने खुलासा किया कि वह हरिश्चंद्र की अखंडता की जांच कर रहे थे और वह परीक्षा में सफल हो गए है। विश्वामित्र हरिश्चंद्र को ताज लौटाते हैं और शिवजी के चमत्कार से रोहिताश्व को वापस जीवन मिल जाता हैं। दादासाहेब फाल्के ने मुंबई के दादर मेन रोड पर इस फिल्म के लिए एक स्टूडियो स्थापित किया। उनके फिल्म सेट हिन्दू मैथोलॉजिकल कहानी वाली राजा रवि वर्मा के पेंटिंग्स से प्रेरित थे। 

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४ साल बाद 1917 ,एक दिन जब राजा हरिश्चंद्र फिल्म बैलगाड़ी द्वारा एक सिनेमा टेंट से दूसरे में ले जाया जा रहा था , तभी के हादसे में इसमें आग लग गई।  फाल्के जी ने उस संस्करण का निर्माण करने के लिए जल्दी से पूरी फिल्म को रीशूट किया जो आज फ़िल्मी जगत में सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र के नाम से मौजूद है। २१ अप्रैल 1913 वो ऐतिहासिक दिन था जिस दिन इसका प्रीमियर ओलम्पिया थिएटर  में किया गया  जहाँ सभी गणमान्य नागरिक, डॉक्टर,स्कॉलर्स , पब्लिक वर्कर्स इत्यादि को आमंत्रित किया गया था और ३ मई 1913 को कोरोनेशन थिएटर में फिल्म रिलीज़ हुई। जहाँ कोई भी फिल्म तीन से चार दिन तक परदे पर नहीं टिक पाती थी वही राजा हरिश्चंद्र पुरे तेईस दिन तक चली।  दादा साहेब फाल्के जी के इस अमूल्य योगदान के लिए उन्हें फ़िल्मी जगत के ‘पिता’ कहा गया।