गीता दत्त की अधूरी ज़िंदगी: टूटे दिल, शक, अहंकार और अफवाहों ने किया बर्बाद

गीता दत्त की आवाज़ ने एक युग को परिभाषित किया। उनकी मधुर गायकी आज भी संगीत प्रेमियों के दिलों में गूंजती है। लेकिन इस जादुई आवाज़ के पीछे एक दर्दभरी कहानी छिपी थी। प्यार, धोखा और तन्हाई ने उनकी ज़िंदगी को त्रासदी में बदल दिया।
संक्षेप में
- शुरुआत: कम उम्र में प्रतिभा दिखी, एस.डी. बर्मन ने पहला ब्रेक दिया।
- प्रसिद्धि: “दो भाई” फिल्म के गाने ने उन्हें मशहूर बनाया।
- प्यार और शादी: गुरु दत्त से मुलाकात, शादी और फिर रिश्ते में दरार।
- अंतिम दिन: संघर्ष, शराब की लत और दर्दनाक अंत।

संगीत सफर की सुनहरी शुरुआत
1930 में जन्मीं गीता का झुकाव बचपन से ही संगीत की ओर था। एस.डी. बर्मन ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और “दो भाई” (1947) में मौका दिया। “मेरा सुंदर सपना बीत गया” गीत सुपरहिट हुआ। कुछ ही समय में उनकी आवाज़ हर दिल की पसंद बन गई।

गुरु दत्त से प्यार और शादी
फिल्म इंडस्ट्री में सफलता के साथ ही गीता की मुलाकात निर्देशक गुरु दत्त से हुई। दोनों में प्यार हुआ और 1953 में शादी कर ली। शुरू में यह रिश्ता खुशहाल रहा, लेकिन समय के साथ दूरियां बढ़ने लगीं।

रिश्तों में आई कड़वाहट
गुरु दत्त का नाम अभिनेत्री वहीदा रहमान से जुड़ने लगा। अफवाहों ने गीता को अंदर तक तोड़ दिया। शक और ईगो ने इस रिश्ते को बिगाड़ दिया। दोनों के बीच झगड़े बढ़ने लगे। आखिरकार, गीता ने खुद को गायकी में झोंक दिया। मगर तनाव ने उनके करियर पर असर डाला।

टूटता करियर और बढ़ता अकेलापन
गुरु दत्त और गीता के बीच तनाव बढ़ता गया। 1964 में गुरु दत्त की मौत हो गई, जिससे गीता पूरी तरह टूट गईं। शराब उनकी ज़िंदगी का हिस्सा बन गई। गाने की जगह ग़म ने ले ली। इंडस्ट्री में भी नए गायक आ चुके थे। उनका संघर्ष और बढ़ गया।

एक दर्दनाक अंत
संगीत से दूरी, मानसिक तनाव और शराब ने उनकी सेहत खराब कर दी। 20 जुलाई 1972 को गीता दत्त का निधन हो गया। महज़ 41 साल की उम्र में इस अनमोल आवाज़ ने दुनिया को अलविदा कह दिया।