Old is Gold | 1940 के दशक का पश्चिम बंगाल: एक बदलते युग की दास्तान

Old is Gold | 1940 के दशक का पश्चिम बंगाल: एक बदलते युग की दास्तान

1940 का दशक भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, और पश्चिम बंगाल इस परिवर्तन के केंद्र में था। यह वह समय था जब स्वतंत्रता संग्राम अपने चरम पर था, द्वितीय विश्व युद्ध की छाया पूरे देश पर थी, और समाज आर्थिक, सांस्कृतिक व राजनीतिक रूप से बड़े बदलावों का साक्षी बन रहा था।

स्वतंत्रता संग्राम और बंगाल

1940 का दशक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का निर्णायक काल था। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज ने ब्रिटिश हुकूमत को चुनौती दी, और बंगाल के युवा इस क्रांति का महत्वपूर्ण हिस्सा बने। भारत छोड़ो आंदोलन (1942) के दौरान कोलकाता और बंगाल के अन्य हिस्सों में कई बड़े प्रदर्शन हुए, जिससे ब्रिटिश शासन हिल गया।

Bengal Famine - Old is Gold Films | oldisgold.co.in
Bengal Famine – Old is Gold Films

1943 का बंगाल अकाल

इस दशक की सबसे दुखद घटनाओं में से एक 1943 का बंगाल अकाल था, जिसमें लाखों लोग भुखमरी से मारे गए। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सरकार की नीतियों और खाद्यान्न की कमी ने इस संकट को और गहरा कर दिया। सड़कों पर भूख से मरते लोगों की तस्वीरें उस समय की सबसे दर्दनाक झलक थीं।

सांस्कृतिक पुनर्जागरण

हालांकि यह दशक कठिनाइयों से भरा था, लेकिन यह बंगाली कला, साहित्य और सिनेमा के लिए भी क्रांतिकारी था। सत्यजीत रे, ऋत्विक घटक और बिमल रॉय जैसे दिग्गजों ने सिनेमा में अपनी छाप छोड़नी शुरू की। कवि रवींद्रनाथ टैगोर की कविताएं और गीत, स्वतंत्रता संग्राम में जोश भर रहे थे।

Bengal Culture - Old is Gold Films
Bengal Culture – Old is Gold Films

औद्योगिक और सामाजिक परिवर्तन

1940 के दशक में बंगाल में उद्योगों का विस्तार हुआ, खासकर जूट मिलों और कपड़ा उद्योग का। लेकिन विभाजन की आशंका ने समाज में तनाव पैदा कर दिया। हिन्दू-मुस्लिम दंगों की घटनाएं बढ़ने लगीं, जो आगे चलकर देश विभाजन का कारण बनीं।

पश्चिम बंगाल का यह दशक संघर्ष और बदलाव का मिश्रण था। यह इतिहास का वह दौर था जिसने स्वतंत्र भारत की नींव रखी।

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