दैविक ममतामयी चेहरा, एक बड़ी लाल बिंदी और एक सादी साड़ी ऐसी छवि सिर्फ माँ की ही हो सकती है और अगर बॉलीवुड की बात करें तो माँ का नाम सुन सिर्फ़ निरुपा रॉय ही याद आती हैं| अमर अख़बार एंथोनी के तीनो बेटों द्वारा रक्तदान वाले दृश्य ने राष्ट्रीय एकता से लेकर के ‘खून पानी से भी गाढ़ा है’ जैसी कहावत तक को सब कुछ परिभाषित किया है।
निरुपा रॉय 70 के दशक में चर्चा में थी कि अमिताभ बच्चन कि फिल्मो में नायिका बदली जा सकती हैं लेकिन माँ नहीं! यहाँ तक कि कई लोग उन्हें सच में अमिताभ जी कि माँ मानने लगे थे -ऐसा था उनकी ऑन-स्क्रीन बॉन्डिंग का असर| तभी तो इन्हे ‘बॉलीवुड कि माँ’ कहते हैं|
आइये जानते हैं अनसुने अनकहे किस्से ‘बॉलीवुड कि माँ’ निरुपा रॉय के बारे में-
मिलिए कोकिला किशोरचंद्र बुलसारा से
4 जनवरी 1931 में वलसाड, गुजरात में जन्मी निरुपा रॉय, बलसारा के गुजरती परिवार में जन्मी थी| उन्हें कोकिला किशोरचंद्र बुलसारा के नाम से बुलाया जाता था। निरूपा रॉय ने 15 साल की उम्र में शादी कर ली और अपने पति के साथ मुंबई आ गईं। दंपति ने एक गुजराती अखबार के विज्ञापन का जवाब दिया था। उनका चयन हो गया और उन्होंने रणकदेवी नामक एक गुजराती फिल्म के साथ अभिनय की शुरुआत की। यहाँ से फिल्मी जगत को ‘निरुपा रॉय’ मिली|
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निरूपा रॉय का शुरुआती करियर कई पौराणिक फिल्मों में देवी-देवताओं की भूमिका निभाने में सफल रहा। निरुपा जी सीता, पार्वती से लेकर मीराबाई और सावित्री तक सब कुछ थी। उनका चित्रण ऐसा था कि कहा जाता है कि लोग उन्हें सच में देवी मान आशीर्वाद लेने आते थे।
ऐसे मिली बॉलीवुड को उसकी ऑन स्क्रीन माँ
रिपोर्टों के अनुसार, पहली बार उन्होंने मुनीमजी (1955) में देव आनंद के लिए एक नायक की माँ की भूमिका निभाई थी। रोचक बात हैं कि 24 वर्षीय अपने ऑन-स्क्रीन बेटे, वो सात साल छोटी थीं!
दीवार के चार शब्द जिसने अमिताभ को शशि कपूर के सामने मौन कर दिया ” मेरे पास मां है ।” ने भले ही लोगों के मन में कोलाहल मचा दिया था लेकिन बड़े ही काम लोगों को ये पता हैं कि निरूपा रॉय यश चोपड़ा की पहली पसंद नहीं थीं। यह भूमिका पहले वहीदा रहमान को दी गई थी, लेकिन यश चोपड़ा के पैर ठंडे पड़ गए क्योंकि उन्होंने उन्हें बच्चन की कभी कभी के रूप में कास्ट किया था । उन्हें डर था कि अगर कभी कभी पहले रिलीज हुई तो दर्शक उन्हें बच्चन की मां के रूप में स्वीकार नहीं करेंगे । वैजंथिमाला को भी यह रोल ऑफर किया गया था लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा दिया जिसका पछतावा उन्हें बाद में हुआ। निरुपा रॉय ने इसके लिए फिल्मफेयर अवार्ड जीता और उस दौर की सबसे अधिक भुक्तान वाली माँ बनी|
आपको बिमल रॉय के प्रतिष्ठित दो बीघा ज़मीन फिल्म तोह याद ही होगी और उसकी आखिरी सीन भी लेकिन क्या आप जानते हैं कि निरूपा रॉय को अंत में मरना था। लेकिन निर्देशक की पत्नी ने इसे बहुत प्रतिगामी पाया क्योंकि बलराज साहनी द्वारा निभाया गया किरदार अपनी पत्नी को खो देने के साथ ही अपनी जमीन जीत लेता है। इसने रॉय को अंत बदलने के लिए प्रेरित किया और निरूपा रॉय बच गई|