नमस्कार दोस्तो, आज हम बात करेंगे पद्मश्री सम्मानित भारत कुमार जी के बारे में | क्या है इनका असली नाम और कैसे बने मनोज कुमार जी भारत कुमार ? भारत पाकिस्तान बटवारे में मनोज जी ने अपने पिता से क्या वादा किया और नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने मनोज कुमारजी से 1965 की लड़ाई में क्या करने को कहा?
24 जुलाई 1937 में ब्रिटिश प्रोविंस में एबटाबाद के ब्राह्मण परिवार में मनोज कुमार जी का जन्म हुआ था | भारत पाकिस्तान के पार्टीशन से पहले एबटाबाद भारत का हिस्सा था | मनोज कुमार का असल नाम हरिकृष्ण गिरी गोस्वामी है|
WATCH HERE
फ़िल्मी जगत में देशभक्ति कि बात हो तो इसके पूरक केवल मनोज कुमारजी है| मनोज कुमार एक ऐसे कलाकार हैं जो आजादी से पहले बंटवारे की आग में झुलस चुके और देशप्रेम की मशाल जलाई। दरअसल, जब हरिकृष्ण गिरी गोस्वामीजी 10 साल के थे तब 1947 बटवारे के कारण विजय नगर, किंग्सवे कैंप में अपने परिवार के साथ रह रहे थे|
एक दिन मनोज जी की माँ और 2 माह का भाई कुकू बीमारी थे और डॉक्टर्स अंडरग्राउंड थे, तब पीड़ित कुकू ने दम तोड़ दिया| मनोजजी बहुत गुस्से में थे, उन्होंने एक लाठी ली और कुछ डॉक्टरों और नर्सों को पीटा, तभी मनोजजी के पिताजी ने आकर स्थिति संभाली| अगले दिन दाह संस्कार कर 2 महीने के कुकू को जमुना नदी में बहा दिया और मनोज जी से कसम ली कि वो कभी किसी पे हाथ नहीं उठाएंगे| कुछ समय बाद पुराने राजेंद्र नगर, नयी दिल्ली में शिफ्ट हो गए और हिन्दू कॉलेज से ग्रेजुएशन की| बचपन से वे दिलीप कुमार, अशोक कुमार और कामिनी कौशल के फैन थे और एक दिन शबनम में दिलीप कुमार के किरदार देखने के बाद उन्होंने अपना नाम हरिकृष्ण गिरी गोस्वामी से मनोज कुमार रख विख्यात हुए|
“मैं मुंबई दो लक्ष्य लेकर आया था। एक तो हीरो बनना था और दूसरा 3 लाख रुपये कमाने थे, एक बार दोनों हो गए….मैंने बस अपनी बात सुनी” – इन शब्दों और सपनों के साथ २० साल के मनोज कुमार ने अपना पहला रोल 1957 की फैशन फिल्म में एक 80 साल के बुज़ूर्ग का किया था|
Listen
1960 के कांच की गुड़िया में मनोजजी को पहला ब्रेक मिला | 1960 के दशक में उनकी सफल फिल्मों में जहाँ हनीमून, अपना बनाके देखो, नकल नवाब, पत्थर के सनम, साजन और सावन की घटा जैसी रोमांटिक फिल्में और शादी, गृहस्थी, अपने हुए पराए और आदमी जैसी सामाजिक फिल्में और गुमनाम, अनीता जैसी थ्रिलर फिल्में शामिल थीं। वही वो कौन थी और पिकनिक जैसी कॉमेडी फिल्मे भी थी। 1965 की ‘शहीद’ फिल्म से शुरू हुआ जिसकी ghost script राइटर भी मनोज जी थे. इस फिल्म के साथ मनोज कुमार का रुझाव देशभक्ति वाली फिल्म की तरफ़ बढ़ गई| चर्चा है की शास्त्री जी फिल्म के प्रीमियर पर 10 मिनट का समय निकाल कर आये थे पर एक बार फिल्म देखने के बाद वह इतने मग्न हो गए कि पूरी फिल्म देख बैठे। मनोज कुमार को ऑपरेटर से कहना पड़ा कि वह इंटरवल के लिए फिल्म को बंद न करें। शास्त्री जी ने भारत पाकिस्तान की 1965 की लड़ाई में देशवासिओं का मनोबल और देशप्रेम के लिए मनोज कुमार जी से देशभक्ति पर फिल्म बनाने को कहा| इसके बाद मनोज कुमार ने पहली बार स्क्रिप्टुरिटेर, एक्टर और डायरेक्टर के रूप में आये और ‘जय जवान जय किसान’ स्लोगन के साथ एक किसान और सिपाही का रोल निभाया| इस फिल्म ने देश में नै उमंग बढ़ा दी और कई filmfare अवार्ड्स भी जीते|
1960 के दशक के अंत और 1970 के दशक की शुरुआत में, मनोज ने एक प्रेमी (आदमी, दो बदन), थ्रिलर (अनीता, गुमनाम, साजन) और यहां तक कि एक चुलबुले रोमांटिक हीरो (पत्थर के सनम) में एक flirty romantic hero की भूमिकाएँ निभाईं| लेकिन यह देशभक्त के रूप में था कि वह बॉक्स-ऑफिस पर, पूरब और पश्चिम (1970) के सौजन्य से, पूर्व के गुणों पर धर्मांतरण करने वाली फिल्म; रोटी कपड़ा और मकान (1974), एक बेरोजगार युवक की कहानी है जो अस्थायी रूप से खुद को और व्यवस्था को साफ करने से पहले लुटेरों के लालच में दम तोड़ देता है; और क्रांति (1981), 19वीं शताब्दी पर आधारित एक फिल्म जिसने एक स्वतंत्र भारत के लिए संघर्ष को गौरवान्वित किया। क्रांति उन्हें अपने आदर्श, दिलीप कुमार को निर्देशित करने का अवसर मिला| 1992 में इन्हे भरत सर्कार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया|
बॉलीवुड से रिटायरमेंट के बाद 2004 में बीजेपी join कर ली| 1992 में इन्हे भरत सर्कार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया| बॉलीवुड से रिटायरमेंट के बाद 2004 में बीजेपी join कर ली| 1992 में मनोज कुमार जी को पद्मश्री, 2015 में दादा साहेब फाल्के अवार्ड से सम्मानित किया गया | 2011 में श्री साईं बाबा के प्रति मनोज कुमार के समर्पण देख, शिरडी में श्री साईबाबा संस्थान ट्रस्ट ने शिरडी में “पिंपलवाड़ी रोड” का नाम बदलकर “मनोजकुमार गोस्वामी रोड” कर दिया। देश में patriotism की नीव रखने वाले मनोज कुमार जी को ओल्ड इस गोल्ड का सलाम|