डॉ. वर्गीज़ कुरियन: अमूल और श्वेत क्रांति का सफर

अमूल: भारत की सबसे बड़ी डेयरी क्रांति की शुरुआत
आज अमूल भारत का सबसे बड़ा डेयरी ब्रांड है, लेकिन इसकी नींव एक छोटे आंदोलन से रखी गई थी। 1946 में, गुजरात के आनंद में स्थानीय किसानों ने पोलसन डेयरी के खिलाफ विरोध किया, क्योंकि वह दूध सस्ते में खरीदकर ऊंचे दामों पर बेचती थी। किसानों ने सरदार वल्लभभाई पटेल से मदद मांगी, जिन्होंने सहकारी संस्था बनाने का सुझाव दिया। इसी विचार से कैरा डिस्ट्रिक्ट को-ऑपरेटिव मिल्क प्रोड्यूसर्स यूनियन लिमिटेड (KDCMPUL) अस्तित्व में आया, जो आगे चलकर अमूल के रूप में प्रसिद्ध हुआ।

डॉ. वर्गीज़ कुरियन का आगमन और बदलाव की शुरुआत
1949 तक यह सहकारी संस्था सिर्फ दो गांवों तक सीमित थी, लेकिन डॉ. वर्गीज़ कुरियन के जुड़ने से इसका पूरा रूप बदल गया। कुरियन ने अमेरिका में मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी और वह न्यूक्लियर साइंटिस्ट बनना चाहते थे। लेकिन भारत सरकार की स्कॉलरशिप के तहत उन्हें आनंद की एक डेयरी रिसर्च क्रीमरी में काम करना पड़ा। अनमने ढंग से पहुंचे कुरियन, किसानों की समस्याओं को समझते ही पूरी तरह इस आंदोलन से जुड़ गए और इसे एक राष्ट्रीय क्रांति में बदल दिया।

डेयरी उद्योग में नवाचार और श्वेत क्रांति
भारत में उस समय भैंस के दूध से पाउडर बनाने की कोई तकनीक नहीं थी। कुरियन ने इस चुनौती को अपने अमेरिकी मित्र एच. एम. दलाया की मदद से हल किया और 1955 में पहली बार भैंस के दूध से पाउडर और कंडेंस्ड मिल्क बनाने में सफलता पाई। इसके बाद, अमूल मॉडल को पूरे भारत में अपनाने के लिए राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) की स्थापना की गई, जिसके अध्यक्ष खुद कुरियन बने।

ऑपरेशन फ्लड: भारत को दुग्ध उत्पादन में विश्व नेता बनाना
1965 में लाल बहादुर शास्त्री ने ऑपरेशन फ्लड की शुरुआत की, जिससे भारत दुग्ध आयातक से विश्व का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक बन गया। आज, अमूल का टर्नओवर ₹52,000 करोड़ से अधिक है और यह 35 लाख से अधिक किसानों को रोजगार देता है।

अमूल और ‘मंथन’ फिल्म की प्रेरणा
अमूल के सहकारी आंदोलन से प्रेरित होकर 1976 में श्याम बेनेगल ने फिल्म ‘मंथन’ बनाई, जिसे किसानों से ₹2 प्रति व्यक्ति चंदा लेकर बनाया गया था। यह फिल्म Old is Gold Films के ऐतिहासिक योगदानों में से एक मानी जाती है।
डॉ. वर्गीज़ कुरियन की विरासत
डॉ. कुरियन को पद्मश्री, पद्मभूषण, पद्मविभूषण और रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 9 सितंबर 2012 को उनका निधन हो गया, लेकिन उनका बनाया अमूल मॉडल आज भी लाखों किसानों की आर्थिक रीढ़ बना हुआ है।
डॉ. कुरियन का यह सफर साबित करता है कि एक व्यक्ति की दूरदृष्टि कैसे पूरे देश की तस्वीर बदल सकती है।