आज ही के दिन 3 मई 1913 को भारत की पहली फीचर फिल्म राजा हरिश्चंद्र प्रदर्शित हुई थी। जब भी सिनेमा की बात होती है, तो इस फिल्म का जिक्र अवश्य होता है। सीमित संसाधनों के बावजूद एक शानदार फिल्म का निर्माण उस वक्त कैसे संभव हुआ, कैसे दर्शक इस फिल्म को देखने थिएटर में पहुंचे?, ये सब बातें जिज्ञासा जगाती हैं।
हिंदी सिनेमा के पितामह कहे जाने वाले दादा साहेब फाल्के ने पहली बार फिल्म राजा हरिश्चंद्र का निर्माण किया था। यह फिल्म दादा साहेब फाल्के के जुनून और जिद का ही नतीजा है। 1911 में बंबई में ‘लाइफ ऑफ क्राइस्ट’ नाम की अंग्रेजी फिल्म देखने के बाद दादा साहेब फाल्के को हिंदी फीचर फिल्म बनाने का आइडिया आया और वह तुरंत इसमें जुट गए। पहले वह भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं पर फिल्म बनाना चाहते थे और फिर उन्होंने कोई छोटा प्रसंग चुनने का मन बनाया। इसके बाद राजा हरिश्चंद्र फाइनल हुई।
उस समय फिल्म बनाना बेहद चुनौती भरा काम था क्योंकि उपकरण भारत में उपलब्ध नहीं थे। अपने दोस्तों से कुछ रुपये उधार लेकर दादा साहेब फाल्के लंदन गए और फिल्म निर्माण की जानकारी और उपकरण हासिल किए। इसके बाद कास्टिंग का काम बेहद मुश्किल था। कोई प्रोफेशनल आर्टिस्ट नहीं था, ऐसे में काम करना मुश्किल था। कई रोल फाइनल कर लिए लेकिन तारामती के रोल के लिए कोई महिला तैयार नहीं हुई। इसके बाद एक चायवाले को तारामती के महिला के रोल में फिट किया गया।
यह फिल्म कुल 40 मिनट की थी जिसकी शूटिंग 6 महीने 27 दिन में पूरी हुई थी। इस फिल्म की रील 3700 मीटर लंबी थी। इस फिल्म का बजट उस समय करीब 20000 रुपये था।
? पहली फिल्म की 109 वीं वर्षगांठ पर बधाई